बीकानेर पीबीएम हॉस्पिटल में नर्स द्वारा प्रसूता से रुपये मांगने का मामला: स्वास्थ्य सेवाओं पर उठे सवाल
राजस्थान के बीकानेर स्थित संभाग के सबसे बड़े पीबीएम हॉस्पिटल की जनाना विंग में हाल ही में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। इंद्रा कॉलोनी निवासी जयप्रकाश टाक, जो पेशे से एंबुलेंस चालक हैं, अपनी पत्नी जयश्री को लेबर पेन होने के बाद रविवार शाम अस्पताल लेकर पहुंचे। डिलीवरी के बाद, जब बेटी का जन्म हुआ, तो नर्स ने परिवार से सीधे तौर पर 1100 रुपये की "बधाई" राशि की मांग कर दी।
परिजनों के अनुसार, जब प्रसूता की सास ने नर्स से कहा कि उनका बेटा दिनभर एंबुलेंस चलाकर सात-आठ सौ रुपये ही कमाता है और खुशी से 500 रुपये दे रहे हैं, तब भी नर्स ने सख्त लहजे में पूरे 1100 रुपये देने की जिद की। आधे घंटे तक समझाने-बुझाने के बाद, परिजन ने मजबूरी में 1000 रुपये थमा दिए, जिसके बाद ही नवजात को मां के पास लाया गया। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान प्रसूता अपनी बच्ची का चेहरा तक नहीं देख पाई थी।
मामले की शिकायत और प्रशासन की प्रतिक्रिया
पीड़ित परिवार ने इस घटना की लिखित शिकायत पीबीएम अधीक्षक और मैटर्न ऑफिस के रजिस्टर में दर्ज कराई है। जयप्रकाश का कहना है कि अस्पताल के जनाना विंग में यह कोई नई बात नहीं है — यहां बच्चे के जन्म के बाद बधाई के नाम पर रुपये मांगना एक तरह से "रिवाज" बन चुका है। अस्पताल प्रशासन इस तरह की घटनाओं पर आंख मूंदे हुए है।
इस मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए मैटर्न किस्तूरी नूनिया ने कहा कि संबंधित नर्स शिखा को लेबर रूम से हटा दिया गया है। हालांकि, इससे पहले भी रुपये मांगने के आरोप में दो नर्सों को हटाया जा चुका है, लेकिन उनकी जगह आने वाले स्टाफ पर भी वही आरोप दोहराए गए हैं।
अस्पताल की अन्य अव्यवस्थाएं
घटनास्थल की जांच करने पर कई अन्य कमियां भी सामने आईं। दोपहर 2 बजे के बाद अस्पताल में सोनोग्राफी की सुविधा उपलब्ध नहीं होती, जिसके कारण कई बार प्रसूता महिलाओं को प्रसव पीड़ा के दौरान भी दूसरे कैंपस में पैदल जाना पड़ता है। 2:10 बजे के करीब एक महिला को अपने परिजनों के साथ मरदाना कैंपस जाते देखा गया, क्योंकि जनाना विंग में ट्रॉली या व्हीलचेयर तक उपलब्ध नहीं थी।
डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ, जो खुद महिलाएं हैं, यह भली-भांति समझ सकती हैं कि प्रसव पीड़ा में महिला के लिए पैदल चलना कितना कष्टदायक है, फिर भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि इतने बड़े अस्पताल में बुनियादी सुविधाएं भी क्यों नहीं मिल रही हैं।
नियमों का उल्लंघन और राजनीतिक दबाव
अस्पताल के नियमों के अनुसार, हर छह महीने में नर्सिंग स्टाफ का रोस्टर बदला जाना चाहिए, लेकिन कुछ नर्सिंग स्टाफ पिछले तीन-तीन साल से एक ही जगह कार्यरत हैं। एचओडी के आदेशों की खुली अवहेलना हो रही है।
सूत्रों के अनुसार, जब भी किसी नर्स को ऐसे मामलों में हटाया जाता है, वह राजनीतिक संपर्कों का इस्तेमाल कर फिर से अपनी पुरानी जगह पर लौट आती है। इस कारण से डॉक्टर भी ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते, जिससे स्थिति जस की तस बनी रहती है।
सामाजिक दृष्टिकोण से समस्या
प्रसूता और उसके परिजनों से पैसे मांगना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह स्वास्थ्य सेवा के मानवीय मूल्यों के खिलाफ भी है। जिस समय एक मां और उसका परिवार खुशी और भावनाओं से भरा होता है, उस समय ऐसे आर्थिक दबाव डालना बेहद संवेदनशील स्थिति को और कठिन बना देता है।
राजस्थान जैसे राज्य में, जहां ग्रामीण और गरीब तबके के लोग सरकारी अस्पतालों पर निर्भर रहते हैं, वहां इस तरह की घटनाएं मरीजों का विश्वास कम करती हैं और स्वास्थ्य प्रणाली की छवि को धूमिल करती हैं।
निष्कर्ष और अपील
यह घटना स्पष्ट रूप से बताती है कि अस्पतालों में केवल चिकित्सा सुविधाओं को ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक और नैतिक मानकों को भी सुधारने की आवश्यकता है। राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग को इस प्रकार की घटनाओं पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और दोषी कर्मचारियों के खिलाफ उदाहरण पेश करना चाहिए।
इसके अलावा, अस्पताल में पारदर्शी शिकायत प्रणाली, बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता और समय-समय पर स्टाफ का रोटेशन सुनिश्चित किया जाना चाहिए। तभी मरीजों और उनके परिजनों का भरोसा लौटाया जा सकता है।

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