मधुबनी की पहली महिला कबड्डी कोच: संघर्ष, समर्पण और नई पीढ़ी के लिए मिसाल
बिहार के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान से भरे मधुबनी जिले में एक नई कहानी लिखी जा रही है—खेल मैदान पर, मिट्टी की सौंधी खुशबू के बीच, बेटियों के सपनों के साथ। यह कहानी है जिले की पहली महिला कबड्डी कोच की, जिनका सफ़र गाँव की गलियों से शुरू होकर जिला और राज्य स्तर के प्रशिक्षण कैम्पों तक पहुँचा। यह केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि सामाजिक बाधाओं को पार कर “मैं भी कर सकती हूँ” का भरोसा जगाने वाली प्रेरक यात्रा है।
- गाँव के स्कूल मैदान से शुरुआत, संसाधनों की कमी के बावजूद निरंतर अभ्यास।
- इंटर-स्कूल और जिला स्तरीय कबड्डी में लगातार प्रदर्शन, कोचिंग सर्टिफिकेट तक पहुँच।
- छात्राओं के लिए नि:शुल्क/नाममात्र शुल्क पर नियमित प्रशिक्षण—फिटनेस, तकनीक और अनुशासन पर फोकस।
- लक्ष्य: मधुबनी की बेटियों को राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट तक ले जाना।
शुरुआत: मिट्टी, मैदानी दौड़ और परिवार का भरोसा
बचपन में खेलना अक्सर लड़कियों के लिए सीमित गतिविधि माना जाता था—कूद-फाँद ठीक, पर प्रतिस्पर्धी खेल नहीं। ऐसे माहौल में उन्होंने कबड्डी चुना। शुरुआत में जर्सी नहीं, स्कूल ड्रेस में ही वार्म-अप, दुपट्टे को बाँधकर शटल रन, और आवाज़ से मेट्रोनोम बनाकर रेड-होल्ड की टाइमिंग। परिवार की शुरुआती झिझक के बावजूद माँ का साथ मिला—“दौड़ना है तो दौड़, पर पढ़ाई मत छोड़।” यही संतुलन बाद में उनके कोचिंग दर्शन की नींव बना।
पहली सफलता और सीख: नियम, तकनीक और टीमवर्क
इंटर-स्कूल टूर्नामेंट में मिली पहली जीत ने दिशा तय कर दी। वहीं समझ आया कि कबड्डी केवल ताकत का खेल नहीं, यह रणनीति का खेल है—कब रेड लेनी है, डूबकी कहाँ लगानी है, कैंट
की लय कैसे बनाए रखनी है। उन्होंने नोटबुक में हर मैच के बाद तीन बातें लिखना शुरू किया—क्या अच्छा हुआ, क्या नहीं, और अगले मैच में क्या बदलें। यही स्व-अनुशासन आगे चलकर उनके खिलाड़ियों में भी दिखने लगा।
कोच बनने का फैसला: “खेलो और खिलाओ”
कॉलेज के दौरान चोट ने खेल से दूरी बना दी, पर खेल छोड़ा नहीं—रोल बदला। उन्होंने जिला खेल कार्यालय, शिक्षा विभाग और स्थानीय क्लबों से जुड़कर बेसिक कोचिंग से शुरुआत की। बाद में राज्य खेल निदेशालय द्वारा मान्य कोचिंग सर्टिफिकेशन कोर्स पूरा किया—फिटनेस साइंस, स्पोर्ट्स न्यूट्रिशन, टैक्टिकल ड्रिल्स, और एथिक्स इन कोचिंग की पढ़ाई ने दृष्टि व्यापक की। उनका मंत्र बना: “खेलो और खिलाओ”—खुद सक्रिय रहो, और अगली पीढ़ी को बेहतर प्लेटफॉर्म दो।
प्रशिक्षण का मॉडल: फिटनेस, तकनीक और मनोबल
उनके सेशन तीन स्तंभों पर चलते हैं—फिटनेस, टेक्निक और माइंडसेट। वार्म-अप में एबीसी (Agility, Balance, Coordination), स्किपिंग और शटल-रन; टेक्निकल ड्रिल्स में चेन टैकल, एंकल होल्ड, डूबकी, और हैंड-टच की रेपिटिशन; माइंडसेट में विजुअलाइजेशन और पोस्ट-सेशन जर्नल—हर खिलाड़ी अपने तीन पॉइंट लिखती है। सप्ताह में एक दिन केवल रीकवरी—स्ट्रेचिंग, ब्रीदिंग और टीम-बॉन्डिंग गेम्स।
सुरक्षा और चोट-रोकथाम
लड़कियों के लिए सेफ्टी सर्वोपरि है। वे नी-टेपिंग, एंकल मोबिलिटी और सही लैंडिंग पर जोर देती हैं। हर सेशन में हाइड्रेशन ब्रेक, साधारण इलेक्ट्रोलाइट, और प्रशिक्षण से पहले हल्का स्नैक—केला/मुरमुरा/चना—की सलाह दी जाती है, ताकि लो-शुगर के कारण चक्कर न आएँ।
समाज की चुनौतियाँ और समाधान
जब वे बेटियों को मैदान में लाईं तो सवाल उठे—“लड़कियाँ शाम को बाहर क्यों?” उन्होंने अभिभावकों के साथ ओपन मीटिंग की। वहाँ अभ्यास-समय, सुरक्षा-प्रोटोकॉल, और पढ़ाई-संतुलन समझाया। स्कूल/कॉलेज प्रबंधन से बात कर शाम के समय मैदान/हॉल मिलना सुनिश्चित किया। धीरे-धीरे अभिभावक टीम-बैठकों में शामिल होने लगे, और खिलाड़ी खुद अपनी प्रगति घर में साझा करने लगीं।
उपलब्धियाँ: आँकड़ों से आगे बढ़कर प्रभाव
कुछ सालों में उनकी शिष्याएँ जिला स्तर पर टॉप-4 में पहुँचीं, दो खिलाड़ियों ने राज्य टीम के कैम्प में जगह बनाई, और कई स्कूलों में गर्ल्स कबड्डी टीम शुरू हुई। पर उनकी सबसे बड़ी जीत?—कई छात्राओं का आत्मबल, वक्त पर बोलना, और पढ़ाई में भी अनुशासन। वे कहती हैं, “मैडल से बड़ा मेडल है आत्मविश्वास।”
कैसे बनें कबड्डी खिलाड़ी: मधुबनी की बेटियों के लिए गाइड
वे नया बैच शुरू करते समय स्टेप-बाय-स्टेप रास्ता बताती हैं—(1) रोज़ 20–30 मिनट कार्डियो (दौड़/स्किपिंग), (2) बेसिक स्ट्रेंथ (स्क्वैट, लंज, प्लैंक), (3) कबड्डी की मूल तकनीक (कैंट, रेड, बेस-लाइन अवेयरनेस), (4) सप्ताहिक मैच-सिमुलेशन। महीने में एक बार एसेसमेंट—40-मीटर स्प्रिंट टाइम, प्लैंक होल्ड, टैकल-टेक्निक स्कोर, और गेम-रीडिंग। इससे खिलाड़ी खुद अपनी प्रगति देखती है।
ग्रासरूट से इन्फ्रास्ट्रक्चर तक: क्या चाहिए और कैसे मिलेगा
कोच का मानना है कि बेहतर मैट, पर्याप्त रोशनी, प्राथमिक उपचार किट और सुरक्षित परिसर—ये चार चीज़ें हर प्रशिक्षण केंद्र में अनिवार्य हैं। स्थानीय निकाय, CSR और पूर्व खिलाड़ियों की सहायता से वे कम-खर्च, ज़्यादा-प्रभाव मॉडल पर संसाधन जुटाती हैं। कई बार वे इस्तेमाल किए गए, पर ठीक-ठाक मैट भी रीफर्बिश कराकर उपयोग में लाती हैं—प्रयोजन बड़ा है: लगातार अभ्यास।
पढ़ाई और खेल का संतुलन: टाइम-टेबल ही जीत
वे खिलाड़ियों से साप्ताहिक टाइम-टेबल बनवाती हैं—सुबह 30 मिनट रिविजन, शाम को 90 मिनट अभ्यास, रात को 20 मिनट नोट्स। परीक्षा से पहले प्रशिक्षण का भार घटा दिया जाता है, और ऑफ-सीजन में फिटनेस पर फिर जोर। संदेश स्पष्ट है—खेल पढ़ाई का दुश्मन नहीं, साथी है।
महिला सशक्तिकरण की वास्तविक तस्वीर
कोच कहती हैं, “सशक्तिकरण पोस्टर से नहीं, प्रक्रिया से आता है।” जब लड़की खुद अपनी फिटनेस, अनुशासन और निर्णय पर काम करती है, तो परिवार—और समाज—दोनों बदलते हैं। मधुबनी जैसे सांस्कृतिक जिले में खेल का यह स्वरूप नए सामाजिक मानक तय कर रहा है।
भविष्य की योजना: जिला अकादमी और राज्य पदक
लक्ष्य स्पष्ट है—जिला स्तर पर गर्ल्स कबड्डी अकादमी, जहाँ फिटनेस लैब, वीडियो-एनालिटिक्स, न्यूट्रिशन काउंसलिंग और करियर-गाइडेंस एक साथ उपलब्ध हों। वे चाहती हैं कि अगले 2–3 वर्षों में मधुबनी से राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर खिलाड़ियों की स्थायी उपस्थिति बने।
अभिभावकों के नाम संदेश
“बेटियों को मैदान दें, वे खुद रास्ता ढूँढ लेंगी।” वे कहती हैं—बस सुरक्षा, समय और सम्मान दीजिए। स्कूल-खेल का तालमेल बैठाइए। खेलों से आने वाली स्कॉलरशिप, रिज़र्वेशन लाभ और कैरियर विकल्प पर ध्यान दीजिए—कोचिंग, स्पोर्ट्स साइंस, फिजियो, फिटनेस ट्रेनिंग, आर्मी/पुलिस की तैयारी—संभावनाएँ अनेक हैं।
खिलाड़ियों के लिए प्रैक्टिकल चेकलिस्ट
- हर दिन 8–10 हजार स्टेप्स या 20–30 मिनट कार्डियो।
- सप्ताह में 3 दिन फुल-बॉडी स्ट्रेंथ (बॉडीवेट से शुरुआत)।
- कबड्डी की 4 मुख्य तकनीक—हैंड-टच, डूबकी, एंकल-होल्ड, चेन-टैकल—की रेपिटिशन काउंट लिखें।
- सेशन-जर्नल: आज क्या सीखा, कहाँ चूके, कल क्या सुधारेंगे।
- नींद 7–8 घंटे, पानी 2–3 लीटर, और साधारण घर का भोजन।
मधुबनी की बेटियों के नाम
यह कहानी केवल एक कोच की नहीं, हर उस लड़की की है जो मैदान को अपना मंच मानती है। मधुबनी की मिट्टी ने सदियों से कला—मधुबनी पेंटिंग—से दुनिया को मोहा है; अब खेलों में भी यह मिट्टी नई पहचान बना रही है। अगर आप भी कबड्डी खेलना चाहती हैं, तो यही समय है—शुरुआत आज ही।
कदम बढ़ाइए: कहाँ संपर्क करें
स्थानीय स्कूल/कॉलेज के खेल विभाग, जिला खेल कार्यालय, और मान्यता प्राप्त क्लबों से जानकारी लें। ट्रायल से पहले बेसिक फिटनेस पर ध्यान दें, और अपने अभिभावकों के साथ जाकर रजिस्ट्रेशन कराएँ। याद रखें—नियमितता सबसे बड़ा हथियार है।
निष्कर्ष: एक कोच, एक जिला और अनगिनत सपने
मधुबनी की पहली महिला कबड्डी कोच ने जो शुरुआत की है, वह अब एक आंदोलन बन सकती है—जब अभिभावक साथ आएँ, स्कूल संसाधन दें, और बेटियाँ हर दिन थोड़ा-सा बेहतर बनने का संकल्प लें। कबड्डी हमारे गाँव-देहात की धड़कन है; बस उसे दिशा और निरंतरता चाहिए। यही दिशा वे दे रही हैं—खेलो, सीखो और आगे बढ़ो।

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